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Showing posts from May, 2014

पथिक

पथिक अकेला जीवन पथ पर नजर गड़ाये बैठा हू | न आश कोई , न पास कोई , पर आश लगाये बैठा हू | इस पथ पार  आगे बढ़ना है , हर कठिनाई से लड़ना है | हर दरिया पर उतरना है , हर हिमगिरि पर मुझे चढ़ना है | मेड-मेड और डगर-डगर ,    हर नदी - नदी हर नहर-नहर | पदचिन्ह छोड़ने को आतुर,   हर गली-गाँव हर नगर-शहर | एक  कदम बढ़ा एक पाठ पढ़ा,    कुछ मिथक तोड़ नया लक्ष्य गढ़ा| कुछ मंजिल पीछे छूट गये ,     कुछ आगे आना बाकी है | मैं प्रकृति की गीली मिटटी हू, और जीवन कुम्भकार की चाकी है|

सुबह की चाय

J सुबह की चाय सिर्फ एक चाय तो नही ........ शुरुआत है एक नये दिन की .           नये सपनो की ,               नई मंजिलों की ..... | J अगर हैं अकेले , तो सपने ज्यादा हसीन होते हैं, सपनों के हर मोती को आशा के धागे से पिरोते हैं | बनते हैं , बिगड़ते हैं, टूट कर बिखरते हैं,    बिखरने के बाद फिर - फिर से जुड़ते हैं || ये सिलसिला जिंदगी में ,  बार - बार आता है|           पर हर बार ये शुरुआत, एक प्याला चाय ही करवाता है || J महबूब के हाथ चाय की , बात ही कुछ और है, वो प्याली की गर्माहट ,        और हाथों की नरमाहट, इसे घूट-घूट पीना ,   उसे लमहा-लमहा जीना, क्या कहू हजरात कि, वो बात ही कुछ और है || J वो चंद घूट जिंदगी की चाहत बन जाते हैं - क्योंकि -        सुबह की चाय सिर्फ एक चाय तो नही ...........