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Showing posts from October, 2015

पहली बार

है आज भी याद वो दिन मुझको , जब पहली बार तुझे देखा | गाल गुलाबी , चंचल चितवन , और अधरों की पतली रेखा || केसर मिली दूध सी रंगत , नव तरुणी की अल्हड़ काया | कमर कमानी , नजरें तिरछी , मंद - मंद मुस्कान की माया || लाल दुपट्टा चुनर पीली , रहती हरदम छैल - छबीली | ठहरे कदम पलट कर देखा , लेकिन कुछ मुँह से ना बोली || केश राशि थी निपट अमावस , धवल दंत थे सोम सरीखे | सुर्ख हिना से सजी हथेली , कोई रूप सजाना तुमसे सीखे || बहुत पुरानी बात है ये , एक लम्बा अरसा बीत गया | यादों के उन धागों से , मैं सपने बुनना सीख गया ; मैं सपने बुनना सीख गया ||

भूले - बिसरे

चाहने से हर चीज मिलती नही , प्यार की कली हर किसी के लिए खिलती नहीं | सच्चा प्यार तो किस्मत से मिलता है , पर हर एक को ऐसी किस्मत मिलती नही | ॥ चन्द रोज की बारिश , फिज़ा में सैलाब ले आयी ! हम रोए तमाम उम्र , सावन सूखा बना रहा ! ॥ ए दिल बता तुझे आता क्या है ? मेरे दिल को थोड़ा चैन आये ;       तो तेरा जाता क्या है ? ॥ कहते हैं की मोहब्बत  जिंदगी बदल देती है, अच्छे भले इंसान को    आवारा बना दिया ! ॥ तेरे वादे पे ऐतबार कर बैरी हुए ज़माने से , हमें क्या ख़बर की ये सौदा बड़ा महँगा है ! ॥ दिल टूटने से यारों दर्द बहुत होता है , वरना दिल्लगी की  हमारी आदत पुरानी है ! ॥ इक तेरे जाने से फिजा की  रौनक चली गयी , हमें क्या ख़बर थी   तुम इतनी संगदिल हो ! ॥ सालों गुजर गए तेरा चेहरा नहीं देखा , पर ऐसे लगता है जैसे  कल ही की तो बात है ! ॥ कहते है जिसे इश्क़ और कुछ नहीं , बस एक जरिया था  हमारी बर्बादी का ! ॥ तुझसे मोहब्बत करना थी हमारी खुशनसीबी , करके बेवफ़ाई तुमने  नसीब से ख़ुशी छ

सिर्फ...

तुझे दिल के किसी कोने में छुपाना चाहूँ , तुझे बार – बार देखू और मुस्कराना चाहूँ | तेरी आँखों से पीने की आदत सी हो गयी है, मै कमअक्ल तो नही जो अब भी पैमाना चाहूँ | उनकी नजरें इनायत कुछ यूँ हुयी हम पर , इस जिंदगी के समंदर में तेरा ही किनारा चाहूँ | कभी वक्त – बेवक्त जिस कलाई को थमा था मैंने , अब उन हाथों में अपने नाम के कंगन सजाना चाहूँ | आखरी मुलाकात में जो रूमाल मेरा पहलू में छोड़ा तुमने , ताउम्र उसे ओढु , और उसी में लिपट के मर जाना चाहूँ ||

रात

ये काली घनी अँधेरी रात उनकी यादो की बारात , चाहे से ना जिन्हें भूल सके   आती है याद हर एक बात || वो भी तो काली रात थी जब तुम मेरे साथ थी  , ये भी वैसी ही रात है बस यादे हमारे साथ है   || यादे के गहरे जख्म से वादों का दर्द रिसता हुआ , पल - पल तुम्हारी चाहत सनम तिल -२ कर मैं मरता हुआ || मर कर भी ना मैं मर सका ऐसा हमारा नाता रहा , तेरी तलाश हर गली जनाजे की ओर से करता रहा || जिन अँधेरे से दूर भगा फिर वो अंधेरे ही आखिर सहारा बने , जितनी सर्द भयानक बाहर है उतनी गर्माहट है कब्र  तले    || अब काली घनी अंधेरी रात बस मेरी दुनिया मेरे ख्वाब , मिलन और जुदाई की सारथी रही ये ठंडी सुहानी सितारों की रात  || वो बरसात की राते और चाहत की बाते , अब रुखसत के दिन और जुदाई की राते     || जुदाई की रात में दिल कहे -- कि --------------- काली घनी अंधेरी रात और उनकी यादो की बारात ||

कशमकश

सपनो की उन गलियों में , न खिल पायी उन कलियों में आशा के दीप जलाता हूँ , बस प्रेम राग ही गाता हूँ || उन लम्हों को , उन यादों को , जो ना निभ पाए उन वादों को लिख – लिख कर दुहराता हूँ , आशा के दीप जलाता हूँ , बस प्रेम राग ही गाता हूँ || तेरा दामन जब से छूटा है , वो कच्चा धागा टूटा है ; सबर का सागर छलका है , बन आंसू आँखों से ढलका है ; अब माटी में मिल जाता हूँ आशा के दीप जलाता हूँ , बस प्रेम राग ही गाता हूँ || क्या समय लौट कर आएगा , अतीत वर्तमान बन जायेगा ; गलबहियाँ डाल रहे होगे , और रात हमें टहलायेगा ; रोते अरमानों को सहलाता हूँ आशा के दीप जलाता हूँ , बस प्रेम राग ही गाता हूँ || कल -कल करती हँसी तुम्हारी , निश्छल नैनों की गहराई ; जब भी हाथ लिया हाथों में , तुम लाख – लाख थी शरमाई ; अब रोज इन्हें दफनाता हूँ आशा के दीप जलाता हूँ , बस प्रेम राग ही गाता हूँ ||

गुलाबो

               १ वो आँखे ,वो पलकें       वो काली सी जुल्फे || तुम्हारा वो चेहरा ,       तुम्हारी वो रंगत   ||  खयालो में आकर ,       ये कहते हैं अक्सर || खुदा ने तुमको बनाने से पहले , सादगी को मन से सजाने की सोची ||       २ हसीन तो बहुत सी हैं , इस  जहान में गुलाबों        || पर तुम जैसी ताजगी ,   उनमें कहाँ हैं             ||               राहे अँधेरी  और  दुनिया वीरान , दिल में छुपी बेवफ़ाई की पूँजी     || खुशबू थी जैसे हवाओं में उस दिन ,   जब उनकी  आवाज़ मेरे कानों में गूंजी || शिकवे तमाम उम्र के  पल भर में मिट गये   || मैं मेरी दुनिया औ पहिया समय का            जो भी जहाँ  थे वही थम गये    || ३ हर पल हर दिन , हर क्ष ण हर घड़ी         ||      स्नेह की मिठास  लेकर , आठ प्रहर मेरे साथ खड़ी     || आइना भी तुझसे है कहता गुलाबो जो दिखता है सबको , है तू उस कद से बड़ी  || आखरी लफ्ज में इतना कहूँगा  की -  सूरत भी है और सीरत भी है , तेरी कर्मो से मेरे घर की कीरत भी है   ||