कशमकश

सपनो की उन गलियों में ,
न खिल पायी उन कलियों में
आशा के दीप जलाता हूँ ,
बस प्रेम राग ही गाता हूँ ||
उन लम्हों को , उन यादों को ,
जो ना निभ पाए उन वादों को
लिख – लिख कर दुहराता हूँ ,
आशा के दीप जलाता हूँ ,
बस प्रेम राग ही गाता हूँ ||
तेरा दामन जब से छूटा है ,
वो कच्चा धागा टूटा है ;
सबर का सागर छलका है ,
बन आंसू आँखों से ढलका है ;
अब माटी में मिल जाता हूँ
आशा के दीप जलाता हूँ ,
बस प्रेम राग ही गाता हूँ ||
क्या समय लौट कर आएगा ,
अतीत वर्तमान बन जायेगा ;
गलबहियाँ डाल रहे होगे ,
और रात हमें टहलायेगा ;
रोते अरमानों को सहलाता हूँ
आशा के दीप जलाता हूँ ,
बस प्रेम राग ही गाता हूँ ||
कल -कल करती हँसी तुम्हारी ,
निश्छल नैनों की गहराई ;
जब भी हाथ लिया हाथों में ,
तुम लाख – लाख थी शरमाई ;
अब रोज इन्हें दफनाता हूँ
आशा के दीप जलाता हूँ ,
बस प्रेम राग ही गाता हूँ ||

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