सिर्फ...
तुझे दिल के किसी कोने में छुपाना चाहूँ ,
तुझे बार – बार देखू और मुस्कराना चाहूँ |
तेरी आँखों से पीने की आदत सी हो गयी है,
मै कमअक्ल तो नही जो अब भी पैमाना चाहूँ |
उनकी नजरें इनायत कुछ यूँ हुयी हम पर ,
इस जिंदगी के समंदर में तेरा ही किनारा चाहूँ |
कभी वक्त – बेवक्त जिस कलाई को थमा था मैंने ,
अब उन हाथों में अपने नाम के कंगन सजाना चाहूँ |
आखरी मुलाकात में जो रूमाल मेरा पहलू में छोड़ा तुमने ,
ताउम्र उसे ओढु , और उसी में लिपट के मर जाना चाहूँ ||
तुझे बार – बार देखू और मुस्कराना चाहूँ |
मै कमअक्ल तो नही जो अब भी पैमाना चाहूँ |
इस जिंदगी के समंदर में तेरा ही किनारा चाहूँ |
अब उन हाथों में अपने नाम के कंगन सजाना चाहूँ |
ताउम्र उसे ओढु , और उसी में लिपट के मर जाना चाहूँ ||
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