मासूम बचपन




मासूम बचपन वो धुँधली सी यादें,

सतरंगी सपने,वो छोटे से वादे।

घर का वो आंगन, और गाँव की गलियां;

वो आम के टिकोरे, मटर की वो फलियाँ।

धान के खेतों में पौधे लगाना,

जौ की फली से घड़ियाँ बनाना।

आलू के ठप्पों से रंगीन होली,

गुझिया घोड़े हाथी से सजती दीवाली।

जाड़ों के दिन और गर्मी की रातें,

किरकिट के किस्से और मंदिर में बातें।

अमरूद के पेड़ और आम के बगीचे,

अपने कंचे छुपाना उस जामुन के नीचे।

वो छुपना-छुपाना, पतंगे उड़ाना,

चोरी से भैया की साइकिल चलाना।

छोटा सा बचपन और लम्बी कहानी,

भूतों के किस्से बड़ों की जुबानी।

हाथों में पाटी कन्धे पे बस्ता,

चवन्नी की चूरन जमाना था सस्ता।

वो गुड़ की जलेबी वो सर्कस वो मेले,

हर दिल लुभाते बिसाती के ठेले।

तालाब किनारे वो मछली पकड़ना,

पेड़ों पे चढ़ना ,उल्टा लटकना।

वो तिलवा वो ढूंढी और लडुआ की तिकड़ी,

बोरी में भर-भर के आती थी खिचड़ी।

हँसते-हँसाते ,सपने सजाते,

सुहाने से दिन और प्यारी सी रातें।

कहाँ छोड़ आया वो मासूम बचपन,

वो सोने से दिल और चाँदी सी बातें।।

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