प्रतिबिम्ब
बैठा हूँ मै सामने ,
एक जलते हुए दिए के |
ह्रदय में उठ रहा है ,
बस एक ही प्रश्न ?
ये दिया है या मैं ही हूँ ,
या है मेरा अपना ही प्रतिबिम्ब |
जो जल रहा है निरंतर ,
कुछ कहे बिना किसी से |
लपटों की लालिमा है ,
ह्रदय का लहू जैसे |
जलती हुयी बाती ,
तस्वीर है विरह की |
किन्तु -
स्वयं को जला कर भी ,
ये शांत है , प्रशांत है |
समेटे हुए स्वयं में ,
अथाह दर्द का सागर ;
बिलख रहा निरंतर ,
ओढ़े प्रसन्नता की चादर |
शायद इसी तरह से ,
मैं भी जल रहा हूँ ;
सुकून की तलाश में ,
दर-दर भटक रहा हूँ
सुकून की तलाश में ,
दर-दर भटक रहा हूँ ||
एक जलते हुए दिए के |
ह्रदय में उठ रहा है ,
बस एक ही प्रश्न ?
ये दिया है या मैं ही हूँ ,
या है मेरा अपना ही प्रतिबिम्ब |
जो जल रहा है निरंतर ,
कुछ कहे बिना किसी से |
लपटों की लालिमा है ,
ह्रदय का लहू जैसे |
जलती हुयी बाती ,
तस्वीर है विरह की |
किन्तु -
स्वयं को जला कर भी ,
ये शांत है , प्रशांत है |
समेटे हुए स्वयं में ,
अथाह दर्द का सागर ;
बिलख रहा निरंतर ,
ओढ़े प्रसन्नता की चादर |
शायद इसी तरह से ,
मैं भी जल रहा हूँ ;
सुकून की तलाश में ,
दर-दर भटक रहा हूँ
सुकून की तलाश में ,
दर-दर भटक रहा हूँ ||
सुंदर रचना !👍
ReplyDeleteरचना को और प्रभावशाली बनाने के लिए आप कुछ पिक्स डाल सकते हो। एक लाइन छोड़ कर लिख सकते हो। इस से रचना आकर्षक लगेगी।
ReplyDelete