मोहब्बत .........
मोहब्बत
तमाम
उम्र मोहब्बत की सीढ़ियाँ नापी हमनें ,
जिस कदम उनसे मिले वो पायदान आखरी हो गया |
पहली मोहब्बत
बनकर ताउम्र याद आना ,
या शरीक-ए-हयात होकर क़यामत
के पार जाना |
हर दिल , हर
शख्श की अपनी ही कैफ़ियत है ,
कुछ को है साथ आना , कुछ को है याद आना |
हुस्न की
फितरतों से अच्छे से है वाकिफ़ ,
मोहब्बत के बाज़ार का तज़ुर्बा है पुराना |
जहां -
खुलते हैं दिल के दरवाज़े सिक्कों के शोर से ,
बदला जाता है अशर्फ़ियों से मोहब्बतों का खज़ाना |
ज़ीभर के रोए
हम भी तमाम दौलत लुटाकर ,
इस शहर में बेदौलत का न कोई पता न ठिकाना |
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