नारी




अनंत काल मिट गया ,
एकांत की परछाई में |
जड़ नहीं चेतन नहीं ,
ब्रह्माण्ड की गहराई में |१|
मेरी कोख में रोपित हुआ ,
चेतना और जीवन का बीज |
सभ्यता विकसित हुयी ,
बने मिटे त्यौहार -तीज |२|
स्वयं ही चितेरी और -
मैं स्वयं चित्रकारी हूँ |
देव -दानव नर नहीं ,
मैं आदि शक्ति नारी हूँ |३|
युग सहस्त्र बीत गये ,
इतिहास भी तो मौन है |
अमूल्य मेरा योगदान ,
किन्तु अस्तित्व मेरा गौण है |४|
जो मजबूत गहरी जड़ नहीं ,
तो वट वृक्ष भी जर्जर हुआ |
सशक्त नारी के बिना ,
समाज न उर्वर हुआ |५|
सभ्यता सिरमौर हमारी ,
जब गार्गी मैत्रेयी अपाला |
फिर सहस्त्रों वर्ष दास थे ,
जब नारी को पिंजरे में डाला |६|
लक्ष्मी इंदिरा ऐश्वर्या कल्पना,
सशक्त भारत में अवनि मोहना |
प्रगति हमेशा रहे सुनिश्चित ,
जब सशक्त नारी हो समाज स्पंदना |७|
शिक्षा दीक्षा उचित परवरिश ,
हर बिटिया का है अधिकार |
सशक्त नारी ही आधार शिला है ,
देश समाज और परिवार |८|https://www.facebook.com/antarmana
https://sk4sushil.blogspot.com/ 

Comments

  1. this is my latest award winning poem.

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  2. अबला नारी तेरी यही कहानी , आंचल में है दूध और आंखों में पानी।

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