वक्त

और देखें ...

एक अरसा गुजर गया , कुछ कहा नहीं ;
शायद कहने लायक जिंदगी में कुछ रहा नहीं |
अक्सर सोचता हूँ कि एक दिन वो वक्त भी आएगा ;
बस इसी एक उम्मीद में क्या कुछ सहा नहीं ||
चलता रहा दरिया के तीर होके बेखबर ,
बार -बार सैलाब आये पर मैं बहा नहीं |
दूर समंदर की आगोश में सूरज भी ,
सुबह आस लेकर आया और शाम वो खुद ही रहा नहीं ||
आशा और निराशा के भंवर में उलझा हूँ कुछ यूँ ,
छोड़ दिया साहिल और समंदर भी अपना रहा नहीं |
तमाम उम्र ख्वाब देखने से बेहतर है एक कोशिश ,
जानते तो तुम भी हो की मैं कोई बाज़ी आज तक हारा नहीं ||और देखें ...

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