बरबस



क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आता,
तुम्हे देखकर बरबस खो जाता हूँ |
अतीत की लहरों को समेटने चला जब भी ,
खुद को यादों के समंदर में खड़ा पाता हूँ ||

लगती है जैसे कल की ही बात है ;
वो बरगद का आँचल , वो हवाओं का तीर ;
दरिया का शोर और वो पहला स्पर्श ,
तुम्हे अपने में समेटता और सहलाता हूँ ||

दिल कहता है की कुछ यादें साझा करूँ तुमसे ,
कुछ लिखूं और कुछ सुनाऊँ ,
पर कलम अटक जाती है और खुद को निःशब्द पाता हूँ ||
कोई जाने या ना जाने ,
कोई सुने या ना सुने ;
इन आँखों में में वो मंजर , और इस रूह में वो यादें ;
पल-पल जीता हूँ और हर पल मुस्कराता हूँ ||

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